तालिबान को लेकर भारत की आशंका सच साबित हो रही है। अफगानिस्तान से जो सूचनाएं आ रही हैं उससे यह बात पता चली है कि तालिबान के साथ वहां अफगानी सेना और जनता पर हमला करने वालों में पाकिस्तान में पनाह पाए 21 आतंकी संगठनों के सदस्य भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना शुरू कर दिया है। इन सूचनाओं से भारत की चिंता भी बढ़ी है क्योंकि जिन आतंकी संगठनों के तालिबान के साथ शामिल होने की बात हो रही है वे सभी भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं। इन संगठनों का तालिबान के साथ युद्धरत होना, कश्मीर को लेकर भारत की सुरक्षा चिंताओं को भी बढ़ा रहा है।
भारत में अफगानी राजदूत फरीद मामुंदजई ने आपसी संपर्को के बारे में दी जानकारी
अफगानिस्तान के भारत में राजदूत फरीद मामुंदजई ने ‘दैनिक जागरण’ को एक साक्षात्कार में तालिबान और पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के आपसी संपर्क के बारे में विस्तार से बताया। मामुंदजई के मुताबिक तालिबान का पाकिस्तानी संपर्क किसी से छिपा नहीं है। ये संगठन पिछले दो दशक से पाकिस्तान में फलफूल रहे थे और पाकिस्तानी सेना उन्हें पूरी शरण दे रही थी। अब हमें पता चला है कि अफगानिस्तान में तालिबान के साथ 21 आतंकी संगठन भी शामिल हैं। ये सारे संगठन अभी तक पाकिस्तान में सक्रिय रहे हैं। इनमें जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा भी शामिल हैं।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी ताशकंद में कनेक्टिविटी पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा था कि पाकिस्तान से 10 हजार आतंकियों ने अफगानिस्तान में तालिबान की मदद के लिए घुसपैठ की है। अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने ट्वीट किया है कि तालिबान के गिरोह में अलकायदा, इस्लामिक संगठन और लश्कर के आतंकी पूरी तरह से शामिल हैं।
जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के सक्रिय आतंकी शामिल
पाकिस्तान की तरफ से पोषित लश्कर-ए-जांघवी, तहरीक-ए-तालिबान के सदस्यों के भी तालिबान के साथ लड़ाई में शामिल होने की सूचना भारतीय खुफिया एजेंसियों को मिली है। माना जा रहा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने दो वर्षो से इन आतंकी संगठनों को चुप्पी साधने को कहा था क्योंकि उसे मालूम था कि देर-सबेर अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान के साथ इन आतंकियों की अफगानिस्तान में घुसपैठ करवाई जाएगी।
आतंकी संगठनों के साथ उसकी साठगांठ को लेकर रूस और चीन भी सतर्क
सूत्रों ने बताया है कि पिछले सात दिनों से अफगानिस्तान को लेकर जितनी भी शांति वार्ताएं हुई हैं उसमें गनी सरकार ने तालिबान के साथ अंतरराष्ट्रीय तौर पर घोषित आतंकी संगठनों के शामिल होने का मुद्दा उठाया है। तालिबान के आक्रामक रवैये और आतंकी संगठनों के साथ उसकी साठगांठ को लेकर रूस और चीन भी सतर्क हैं। लेकिन संभवत: अपनी कूटनीतिक वजहों से ये देश खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी पहले शंघाई सहयोग संगठन और उसके बाद ताशकंद के कनेक्टिविटी सम्मेलन में तालिबान के आतंकी स्वरूप और इससे अफगानिस्तान में आतंकवाद की समस्या गंभीर होने की बात कही थी।
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