उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण बिल क्या है विवाद ?

लेख-राजीव चौधरी 

हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा राज्य में जनसंख्या नियंत्रण के लिए ‘दो बच्चों की नीति’ लागू किये जाने को लेकर बहस शुरू हो गई है। मसौदे में इस बात की सिफ़ारिश की गई है कि ‘दो बच्चों की नीति’ का उल्लंघन करने वालों को स्थानीय निकाय के चुनाव में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं हो। इसके अलावा उनके सरकारी नौकरी में आवेदन करने और प्रमोशन पाने पर रोक लगाई जाये। उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली किसी भी सब्सिडी का लाभ नहीं मिले। आयोग ने जो ड्राफ़्ट तैयार किया है, उसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है और लोगों से कहा गया है कि वो 19 जुलाई तक इसपर अपनी राय रखें. अपने सुझाव भी दें।

ड्राफ़्ट के मुताबिक़, दो से ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाले लोग सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित हो जायेगें। उनके परिवार को सिर्फ़ चार सदस्यों के हिस्से का राशन मिलेगा। अगर सरकार ज़रूरी समझे तो नियम का उल्लंघन करने वालों को दूसरी सरकारी योजनाओं से मिलने वाले लाभ भी ख़त्म कर सकती हैं। दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले लोग स्थानीय, निकाय और पंचायत चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। वो सरकारी नौकरियों के लिए योग्य नहीं होंगे और सरकारी सब्सिडी का फ़ायदा नहीं उठा पाएंगे।

मसौदे में कहा गया है कि “उत्तर प्रदेश में पारिस्थितिकी और आर्थिक संसाधनों की मौजूदगी सीमित है। सभी नागरिकों को मानव-जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे भोजन, साफ़ पानी, अच्छा घर, गुणवत्ता वाली शिक्षा, जीवन यापन के अवसर और घर में बिजली मिलनी चाहिए। वैसे तो इसके दायरे में हर धर्म के लोग आएंगे, लेकिन जग ज़ाहिर है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बहुविवाह की इजाज़त देता है। मसलन, एक शख़्स की अगर दो पत्नियाँ हैं तो इस क़ानून के मुताबिक़ दोनों पत्नियों से इस परिवार में कुल दो बच्चे ही मान्य रहेंगे। दोनों पत्नियों से अगर दो-दो बच्चे हों, तो फिर उसे सरकारी सुविधाओं के लाभार्थी होने के नज़रिये से ग़ैर-कानूनी माना जायेगा, और परिवार सरकारी सुविधाओं के दायरे से बाहर हो जायेगा।

लेकिन इस ड्राप्ट पर कई सवाल खड़े हो रहे है क्योंकि जैसे ही सरकार ने जनसँख्या नियन्त्रण पर ड्राप्ट पेश करके सुझाव मांगे तो समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क सामने आये और कहा कि उत्तर प्रदेश जनसंख्या कानून बनाना सरकार के हाथ में है लेकिन जब बच्चा पैदा होगा तो उसे कौन रोक सकता है, इस दुनिया को अल्लाह ने बनाया है और जितनी रूहें अल्लाह ने पैदा की हैं, वो आनी हैं।

यानि बढती जनसंख्या की समस्या को समझने के बजाय अल्लाह की रूह और अल्लाह की देन बताकर अपना बयान मीडिया के स्टूडियो में फेंक दिया। परन्तु इसका जवाब दिया उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री मोहसिन रजा ने उन्होंने कहा कि 8 बच्चे होंगे तो पंक्चर ही बनाएँगे, हम तो इस बिल से मुसलमानों को टोपी से टाई तक लाना चाहते हैं।

वही योगी जी प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि समाज के विभिन्न तबकों को ध्यान में रखकर सरकार इस जनसंख्या नीति 2021 को लागू करने का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि आबादी को लेकर लोगों को जागरूक किया जाएगा। स्कूलों और अन्य जगहों पर भी इस बारे में लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जाएगी। 2021 से 2030 के लिए प्रस्तावित नीति के माध्यम से परिवार नियोजन कार्यक्रम के बारे में भी लोगो को जागरूक किया जाएगा।

अब सरकार इसमें सुझाव मांग रही है तो इसमें पहला सुझाव ये भी हो सकते है कि अमूमन भारतीय समाज में नौकरी के बाद ही शादी होती है। यानि सरकारी नौकरी मिलने के बाद ही लोगों की शादी और बच्चे होते हैं, और एक बार सरकारी नौकरी मिल जाने और शादी हो जाने के बाद आपके कितने भी बच्चे हों दो हों या चार चाहें आप क्रिकेट टीम बना लीजिये क्या उसकी कोई जाँच या समीक्षा करने आएगा?

अब शायद यहाँ पर जवाब हो सकता है कि उन सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति नहीं मिलेगी। लेकिन इसमें भी एक झोल है कि एपीएल वाले यानि गरीबी रेखा से ऊपर जीवन जीने वाले जब थोड़े से भ्रष्टाचार का चूरन चटाकर गरीबी रेखा से नीचे वाला बीपीएल कार्ड तक बनवा लेते है, फर्जी कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट बनवा लेते है, फर्जी बेंक खाते खुलवा लेते है। तो ऐसे में फर्जी शपथ पत्र बनवाना कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि यहाँ तो बर्मा से भागे रोहिंग्या मुस्लिम भी आधार कार्ड लिए बैठे है।

खैर इसमें दूसरा सवाल ये है कि अगर पूरे देश भर के केंद्रीय व राज्य कर्मचारियों को मिला दिया जाए तो मुश्किल से 10 प्रतिशत लोग इस दायरे में आ पाएंगे। शेष 90 प्रतिशत जो लोग निजी क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं, यानि पान की दूकान हो या रिक्शा रेहड़ी वाले या प्राइवेट नौकरी वाले उनका क्या होगा? ऐसे में सरकारी नौकरी में इस शर्त को जोड़कर 10 प्रतिशत लोगो के भरोसे जनसंख्या नियंत्रण करना आसान काम नहीं है।

यानि बिल को और भी प्रभावी बनाया जाये ताकि वो सभी पर लागु हो क्योंकि कुछ उदाहरण से अगर इसे जोड़कर देखा जाये तो अगस्त 2015 में माननीय उच्च न्यायालय  इलाहाबाद द्वारा आदेश दिया गया था कि सरकारी कर्मचारियों के बच्चे अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूल में ही पढेंगे, अब आप अपने आसपास पता कर लीजिए कितने सरकारी कर्मचारियों के बच्चें सरकारी स्कूल में पढ़ते है? शायद ही कोई सामने आये तो माननीय उच्च न्यायालय के आदेश को क्या कहा जाये!

दूसरा कुछ समय पहले माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा ही सभी धार्मिक स्थलों से ध्वनि विस्तारक यंत्रो के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया गया था।  अब इस आदेश का कितना पालन हुआ, ये भी आप बख़ूबी जानते होंगे! पांच टाइम कानफोडू आवाज से कितनी राहत मिली लोग खुद जानते है। तीसरा जिस सरकारी नौकरी के नियम के आधार पर अब सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर सुझाव मांग रही है उसमें मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी करीब पाँच प्रतिशत से भी कम है। लेकिन जनसँख्या बढ़ाने में अन्य मतो पन्थो के लोगों से कई गुना ज्यादा हिस्सेदारी लिए बैठी है यकीन ना हो तो 2011 के सरकारी आंकड़े उठाकर देख ले।

कहने का अर्थ ये है कि उत्तर प्रदेश कहो या देश भर में जिस रफ़्तार से आबादी बढ़ रही है और आबादी पर जिस तरह के कंट्रोल की बात हो रही हैं तो उसे हासिल करने में सदियां बीत जाएंगी। इतना वक़्त इंसान के पास नहीं है तो उत्तर प्रदेश सरकार ड्राप्ट स्वागत है। लेकिन इसमें कुछ ऐसे प्रावधान भी जोड़े जाये ताकि पूरी जागरूकता और ताकत के साथ आबादी कंट्रोल की जा सके।

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