यूपी में सारा झगड़ा मुस्लिम वोटरों का है. जिसके अब तक तीन बड़े दावेदार थे. समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस. लेकिन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी दावेदारों की लिस्ट में शामिल हो गई है.
नई दिल्लीः यूपी चुनाव में मुसलमान इस बार किसका साथ देंगे? दावा तो समाजवादी पार्टी का है कि वो मुस्लिमों की पहली पसंद हैं पर असदुद्दीन ओवैसी ने इस बार अखिलेश यादव का खेल बिगाड़ने की ठान ली है. सत्ता में बीजेपी है लेकिन मायावती से लेकर ओवैसी के निशाने पर बस अखिलेश हैं. बीएसपी सुप्रीमो समाजवादी पार्टी को नीचा दिखाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ती हैं. लेकिन, सबसे बड़ा आरोप तो ओवैसी ने अखिलेश यादव पर लगाया है. उन्होंने कहा कि कई मुस्लिम पंचायत सदस्य तो चुने गए लेकिन ज़िला पंचायत अध्यक्ष नहीं बन पाए. इसके लिये उन्होंने मुलायम सिंह परिवार को कठघरे में खड़ा किया है.
पाकिस्तानी शायर परवीन शाकिर ने लिखा था वो तो ख़ुशबू है हवाओं में बिखर जाएगा. मसला फूल का है फूल किधर जाएगा. यूपी चुनाव में ये मसला मुसलमानों का है. मुसलमानों का वोट किधर जाएगा मसला राज्य के 19 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों का है. कई चुनावों में हार जीत का फ़ैसला इनके हाथों ही होता रहा. सत्ता में बीजेपी है. बीजेपी के पास योगी आदित्यनाथ वाला हिंदुत्व का सीएम चेहरा है. कहा तो यही जाता है कि मुसलमान बीजेपी को हराने वाली पार्टी को वोट करते हैं. इसी फ़ार्मूले के चक्कर में यूपी में बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्ष में घमासान मचा है. होड़ मची है समाजवादी पार्टी, बीएसपी, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी में. मुसलमानों का असली रहनुमा कौन है?
एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में कम से कम सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. उनकी पूरी कोशिश बस एक माहौल बनाने की है कि मुसलमानों की इकलौती पार्टी एआईएमआईएम हैं. उनके कार्यकर्ता घर घर जाकर बस यही समझा रहे हैं. इसी महीने की आठ जुलाई को वे बहराइच का दौरा करने वाले हैं. उससे पहले उन्होंने अखिलेश यादव पर एक बड़ा हमला बोला है. उन्होंने अखिलेश और उनके पूरे परिवार को मुस्लिम विरोधी बताया है. ट्वीट कर ओवैसी बताते हैं कि मैनपुरी, कन्नौज, बंदायू जैसे ज़िलों में समाजवादी पार्टी के कई पंचायत सदस्य चुने गए थे. लेकिन मुलायम परिवार के दबदबे वाले इलाक़े में भी अखिलेश के लोग ज़िला पंचायत अध्यक्ष के सारे चुनाव हार गए. इस ट्वीट के बहाने ओवैसी ये बताना चाहते हैं कि अखिलेश तो अपने घर में ही ढेर हो गए हैं. जो अपने घर में अपना पार्टी की लाज नहीं बचा पाए वे मुसलमानों के हक़ के लिए कैसे लड़ेंगे. ओवैसी मुस्लिम समाज के मन में ये संदेश बैठाना चाहते हैं कि बस वही उनकी लड़ाई लड़ सकते हैं.
अब लड़ाई इस बात की है कि मुसलमानों के लिए नंबर वन पार्टी कौन है ? सब मिल कर समाजवादी पार्टी का खेल बिगाड़ने चाहते हैं. मायावती ने तो जैसे समाजवादी पार्टी को तबाह करना ही अपना एजेंडा बना लिया है. वे कह भी चुकी है कि अखिलेश के लोगों को हराने के लिए उन्हें बीजेपी का समर्थन भी मंज़ूर है.कांग्रेस तो बीएसपी को अब बीजेपी टीम कहने लगी है. लेकिन प्रियंका गांधी को यूपी में कांग्रेस का प्रभारी बनाने के बाद भी राज्य में पार्टी बस नाम भर की रह गई है.
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी बंगाल में फेल रही. लेकिन उससे पहले बिहार में पार्टी के चार सीटें जीतने में कामयाब रही. हैदराबाद वाली पार्टी की अब यूपी में पतंग उड़ाने की ज़िद है. बस यही डर है कि अखिलेश यादव वाली डोर कहीं पतंग न काट दे. वैसे भी अखिलेश और ओवैसी का छत्तीस वाला रिश्ता बड़ा पुराना है.