पाकिस्तान की इमरान ख़ान सरकार के लिए एक तरफ़ कुआँ है तो दूसरी तरफ़ खाई. यानी उन्हें इन्हीं दो विकल्पों में से एक चुनना है – ऐसा जानकारों का मानना है.
इमरान ख़ान पाकिस्तान को या तो आर्थिक रूप से डिफॉल्टर होने से बचा सकते हैं या फिर अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी मोल ले सकते हैं.
इमरान ख़ान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) सरकार ने गुरुवार को नेशनल असेंबली में वित्त विधेयक प्रस्तुत किया. यह पूरक वित्त बिल है जिससे पाकिस्तान की सरकार को 360 अरब रुपए यानी दो अरब डॉलर के अप्रत्यक्ष कर लगाने का अधिकार मिल जाएगा.
बिल के पास हो जाने के बाद मशीनरी, फ़ार्मा और आयातित फ़ूड आइटम पर 343 अरब रुपए की सेल्स टैक्स छूट वापस ले ली जाएगी. इसके अलावा उत्पाद शुल्क, आय कर, सर्विसेज़ में सेल्स टैक्स की दरें बढ़ जाएंगी.
विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि सरकार ने आईएमएफ़ के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल ज़रदारी भुट्टो ने कहा है कि आईएमएफ़ और इमरान ख़ान की मिलीभगत की क़ीमत पाकिस्तान की जनता को चुकानी होगी.
बिलावल भुट्टो ने कहा है कि आईएमएफ़ की शर्तें पूरी करने के लिए जो बिल लाया गया है, उससे पाकिस्तान दिवालिया हो जाएगा. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सीनेटर शेरी रहमान ने कहा कि इमरान ख़ान की सरकार पाकिस्तान को गिरवी रखने जा रही है. शेरी रहमान ने कहा कि यह बिल देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा है.
सरकार की मजबूरी
सरकार टैक्स बढ़ाने को लेकर अनिच्छुक थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ से एक अरब डॉलर के क़र्ज़ की मंज़ूरी के लिए यह ज़रूरी था.
12 जनवरी को आईएमएफ़ बोर्ड की बैठक है और इसी में पाकिस्तान को मिलने वाले क़र्ज़ पर मुहर लगनी है. बोर्ड की बैठक से पहले पाकिस्तान ने संसद में ये बिल पेश कर दिया है.
पाकिस्तान आईएमएफ़ के दबाव में एक और बिल पेश कर सकता है. इस बिल का नाम है- स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान संशोधन बिल.
अगर यह बिल पास हो जाता है तो पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक को ज़्यादा स्वायत्तता मिल जाएगी. बिल पास हो जाने पर केंद्रीय बैंक सरकार को उधार देने से इनकार कर सकता है. इस बिल को लेकर सरकार ने कोई संकेत नहीं दिया है कि बिल अभी पास किया जाएगा या इसे अभी रोक कर रखा जाएगा.
पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक को मिलेगी स्वायत्तता
निक्केई एशिया से पाकिस्तान में इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्ट्रैटिजिक स्टडीज़ इस्लामाबाद के रीसर्च फ़ेलो अहमद नईम सालिक ने कहा कि दूसरे बिल से केंद्रीय बैंक को सरकार के हस्तक्षेप से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी.
लेकिन एक चिंता सता रही है कि अप्रत्यक्ष करों से कहीं महंगाई ना बढ़ जाए. अगर महंगाई बढ़ती है तो लोग सड़कों पर भी उतर सकते हैं. इमरान ख़ान की सरकार अप्रत्यक्ष कर तब बढ़ाने जा रही है जब उनकी पार्टी पीटीआई को स्थानीय निकाय चुनाव में गहरा झटका लगा है.
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इमरान ख़ान की सरकार का नेशनल असेंबली में किसी तरह से बहुमत है. इस बात की भी आशंका है कि बिल पास हुआ तो उनकी सरकार को समर्थन देने वाली सहयोगी पार्टियां ख़ुद को अलग कर सकती हैं. अगर ऐसा होता है तो सरकार गिर जाएगी.
सरकार की दुविधा
अहमद नईम सालिक कहते हैं, ”संसद में बिल पर वोटिंग के दौरान पीटीआई और सहयोगी पार्टियों के सांसद ग़ैर-हाज़िर रह सकते हैं क्योंकि 20 महीने बाद ही चुनाव है और कोई भी नेता उस बिल को समर्थन नहीं देना चाहेगा, जिससे महंगाई बढ़ सकती है.”
लेकिन सरकार अगर वित्त बिल पास नहीं करती है तो अगले महीने उसे आईएमएफ़ से एक अरब डॉलर का क़र्ज़ नहीं मिलेगा. आईएमएफ़ से पाकिस्तान को तीन साल में छह अरब डॉलर के क़र्ज़ मिलने हैं.
निक्केई एशिया से ही वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल में पाकिस्तान इनिशिएटिव के निदेशक उज़ैर योनास ने कहा, ”बिना आईएमएफ़ की मंज़ूरी के पाकिस्तान को आर्थिक मदद नहीं मिलेगी. इस खालीपन को भरने के लिए न तो चीन से और न ही सऊदी से मदद मिलने वाली है. पाकिस्तान की मुद्रा रुपए पर भारी दबाव होगा, निवेशकों का विश्वास उठ जाएगा, आर्थिक अनिश्चितता नाटकीय रूप से बढ़ेगी और इसका ख़ामियाज़ा आख़िरकार आम पाकिस्तानियों को ही भुगतना होगा.”
बढ़ता क़र्ज़
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की दुर्गति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि बजट घाटा और विदेशी मुद्रा भंडार को ठीक रखने के लिए पिछले पाँच महीनों में 4.6 अरब डॉलर का क़र्ज़ लेना पड़ा है.
अगर आईएमएफ़ से मंज़ूरी नहीं मिलती है, यानी बिल पास नहीं होता है तो इसका मतलब यह हुआ कि पाकिस्तान वैश्विक संस्थाओं से क़र्ज़ नहीं ले पाएगा.
योनास कहते हैं, ”सबसे अच्छी स्थिति यही होगी कि सरकार लोगों को समझा ले जाए. सरकार को बताना होगा कि अंधकार के बाद सुबह होगी.”
कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आईएमएफ़ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अनुशासन में लाने की कोशिश कर रहा है और पाकिस्तान को ये काम करना चाहिए.
पाकिस्तान की बदहाली
इसी महीने पाकिस्तान फ़ेडरल बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू यानी एफ़बीआर के पूर्व चेयरमैन शब्बर ज़ैदी ने कहा था कि पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है.
उन्होंने कहा था, ”सरकार का ये दावा कि सब कुछ ठीक है और चीज़ें अच्छी हो रही हैं; .ये सारी बातें झूठ हैं.” शब्बर ज़ैदी ने ये बात हाल ही में हमदर्द यूनिवर्सिटी में एक भाषण के दौरान कही थी.
हालांकि बाद में ज़ैदी ने ट्विटर पर इसे लेकर सफ़ाई दी थी. उनका कहना था कि उनके भाषण के तीन मिनट की क्लिप पर ही बात हो रही है. ज़ैदी का कहना था कि उन्होंने समाधान की बात भी कही थी.
ज़ैदी ने कहा था, ”किसने क़र्ज़ लिया था, इस पर ताना देने से कुछ नहीं होगा. ये पाकिस्तान का क़र्ज़ है. ब्याज दरों पर फ़ैसला तार्किक तरीक़े से होना चाहिए. दुनिया के किसी भी मुल्क की तरक़्क़ी निर्यात के दम पर होती है. हमें निर्यात को दुरुस्त करना होगा.”
”रेमिटेंस की धारणा से बाहर निकलना होगा. इससे देश नहीं चलेगा. हमें सर्विस निर्यात करनी है न कि काम करने वाले लोगों को एक्सपोर्ट करना है. अफ़ग़ानिस्तान में जब तक समावेशी सरकार नहीं आएगी तब तक पाकिस्तान फँसा रहेगा. पाकिस्तान का निर्यात 20 अरब डॉलर का है और हमारा कोई ख़रीदार है तो पश्चिम है. हमें निर्यात बढ़ाना है तो अमेरिका से दोस्ती करनी होगी.”
शब्बर ज़ैदी इमरान ख़ान की सरकार में ही 10 मई, 2019 से आठ अप्रैल, 2020 तक एफ़बीआर के चेयरमैन थे. शब्बर ज़ैदी ने बाद में ट्वीट कर कहा था, “मैंने क्यों कहा कि वर्तमान केंद्रीय वित्तीय ढांचा अलाभकारी और दिवालिया है. केंद्रीय राजस्व 6500 अरब का है. प्रांतों को केंद्र 3500 अरब देता है. बचा 3000 अरब. केंद्र की ऋण सेवा: मंत्रालय 2800 अरब, रक्षा 1500 अरब, प्रशासन 300 अरब, एसओई 500 अरब. मैंने राजस्व को यहां पर उच्च स्तर पर रखा है और ख़र्चों को नीचे.”
NEWS BBC HINDI