जनवरी 2020 में भारत में कोरोना का पहला मामला केरल में आया था. चीन के वुहान शहर से लौटे एक मेडिकल छात्र में कोरोना वायरस पाया गया था. चीन के वुहान शहर से ही कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी.
इसके बाद कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती गई और केरल हॉटस्पॉट बन गया. मार्च तक आधा दर्जन राज्यों में केरल की तुलना में अधिक मामले दर्ज हो रहे थे.
टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आइसोलेट के नियम का पालन करते हुए केरल कोरोना के मामलों की संख्या में कमी लाने में कामयाब रहा था.
कर्व को फ्लैट करने की कई कहानियाँ इस राज्य ने निकलीं. केरल पहली लहर में मामलों को नियंत्रण में रखने में कामयाब रहा. आधिकारिक मृत्यु के आँकड़े भी काफ़ी कम रहे.
दूसरी लहर में इंफेक्शन तेज़ी से बढ़ा, लेकिन बाद में दूसरे राज्यों की तरह मामले यहाँ कम नहीं हुए. और अब एक राज्य जहाँ देश की केवल तीन प्रतिशत आबादी रहती है, वहाँ से आधे से अधिक मामले सामने आ रहे हैं.
वायरस का रिप्रोडक्शन नंबर, जो बताता है कि बीमारी कितनी तेज़ी से फैलती है और कितने लोगों को चपेट में लेती है, वो 1 से अधिक हो गया है. ये दिखाता है कि मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं और लॉकडाउन और दूसरे उपायों की ज़रूरत है.
पिछले एक महीने से राज्य में पॉज़िटिविटी दर 10 प्रतिशत से अधिक रही है. कुल संक्रमितों की संख्या 34 लाख हो गई है और 16,837 लोगों की मौत हो चुकी है.
केरल हर दो में से एक संक्रमित मरीज़ को पहचानने में कामयाब हो रहा है, दूसरे राज्यों में ये दर 30 में से एक की है. वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर गगनदीप कांग कहती हैं, “केरल बहुत टेस्ट कर रहा है. ट्रेसिंग की मदद से टेस्टिंग सही लोगों की हो रही है.”
हाल की एंटीबॉडी टेस्ट के मुताबिक़, छह साल से अधिक के 43 प्रतिशत लोग संक्रमण का शिकार हो गए हैं, पूरे देश में ये दर 68 प्रतिशत है.
मौत की दर कम
ये भी ध्यान देने वाली बात है कि मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन अस्पताल पूरी तरह से भरे हुए नहीं है. केरल में मरने वालों की दर पूरे देश की दर का एक-तिहाई है. राज्य के आधे कोविड बेड ख़ाली हैं और संक्रमण से मरने वालों की दर देश में सबसे कम है.
इसके अलावा केरल में 20 प्रतिशत आबादी का पूरा टीकाकरण कर दिया गया है. 38 प्रतिशत लोगों को एक टीका दिया गया है – इसमें 70 प्रतिशत 45 साल के अधिक उम्र से लोग शामिल हैं.
ये पूरे देश की औसत से ज़्यादा है. यानी राज्य टेस्ट बड़ी संख्या में कर रहा है, मामलों की जानकारी ईमानदारी से दी जा रही है, वैक्सीनेशन भी तेज़ी से हो रहा है और अस्पताल भी भरे हुए नहीं हैं.
स्वास्थ्य अर्थशास्त्री डॉ. रिजो एम जॉन कहते हैं कि जिस तेज़ी से केरल वैक्सीन दे रहा है, तीसरी लहर “दूसरी लहर जितनी घातक नहीं होगी.”
बढ़ते संक्रमण के कई ख़तरे
हालाँकि जानकारों का कहना कि केरल की ये सफलता पूरी कहानी बयां नहीं कर रही. पहला कारण ये है कि लोगों की एक बड़ी संख्या को अभी भी वायरस का ख़तरा है.
बीमारियों के मॉडलिंग एक्सपर्ट डॉ. गौतम मेनन कहते हैं, “इसी कारण से महामारी राज्य में फैल सकती है.”
वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील के मुताबिक़ लोगों की जान बचाने पर ध्यान देकर “लोगों को संक्रमित होने देने के ख़तरे भी है.” और वो है लॉन्ग कोविड यानी ठीक होने के बाद भी संक्रमण के कारण कई तकलीफ़ होना – जिसका असर एक तिहाई लोगों पर होता है, उन पर भी जो एसिप्टोमैटिक हैं.
फ़िजिशियन डॉ. स्वप्निल पारिख का मानना है कि केरल अभी संक्रमण के “तेज़ ग्रोथ के शुरुआती दौर” में है. डेल्टा वेरिएंट में वायरल लोड अधिक होता है और ये तेज़ी से फैलता है.
“अभी अस्पतालों के आँकड़े और मौत की संख्या कुछ समय पहले से हुए संक्रमण को दिखा रही है. इसलिए हम इस बात से बेफ़िक्र नहीं हो सकते कि संक्रमण कम है.”
उनके मुताबिक़ संक्रमण का अधिक पॉज़िटिविटी रेट “चिंता की बात है”.
डॉ मेनन के मुताबिक़ महामारी के लंबे समय तक रहने से वायरस में म्यूटेशन अधिक हो सकता है और नया वैरिएंट पहले से तेज़ी से फैल सकता है. इससे और नए वैरिएंट पैदा हो सकते हैं और संक्रमण का ख़तरा लोगों में बढ़ सकता है, उनमें जिन्होंने टीका नहीं लिया है या उनमें भी जो टीका ले चुके हैं.
“ये चिंता की बात है, केरल का उद्देश्य मामलों को कम करना होना चाहिए.”
कई लोगों का कहना है कि केरल को समझदारी से काम लेना चाहिए और लॉकडाउन लगाना चाहिए. राज्य ने त्योहार मनाने की इजाज़त दे दी, जिससे भीड़ इकट्ठा हुई और संक्रमण का ख़तरा बढ़ गया.
इसके अलावा जानकार मानते हैं कि केरल को डेटा का अध्ययन करना चाहिए, जीनोम सीक्वेंसिंग कर ये पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि किन इलाक़ों में संक्रमण अधिक हैं और नए वैरिएंट को ट्रैक करने की कोशिश होनी चाहिए.
लंदन के मिडिलसेक्स विश्वविद्यालय के गणितज्ञ डॉ मुराद बानाजी कहते हैं, “एक चीज़, जो भारत को अब तक महामारी से सीख लेनी चाहिए थी, वो ये है कि तेज़ी से बढ़ते हुए मामलों को लेकर सावधानी बरतें.”
मुमकिन है कि केरल दूसरे राज्यों से इस मामले में अलग न हो.
बीबीसी साभार